जेट वायुधारा (Jet Stream)
•ये क्षोभसीमा (Tropopause) के निकट पश्चिम से पूर्व दिशा में चलने वाली अत्यधिक तीव्र गति की क्षैतिज पवनें हैं। जेट वायुधाराएँ लगभग 150 किमी. चौड़ी एवं 2 से 3 किमी. मोटी एक संक्रमण पेटी में सक्रिय रहती हैं। सामान्यतः इनकी गति 150 से 200 किमी. प्रति घंटा रहती है, परंतु क्रोड़ (Core) पर इनकी गति 325 किमी. प्रति घंटा तक भी हो सकती है।
•जेट वायुधाराएँ सामान्यतः उत्तरी गोलार्द्ध में ही मिलती हैं जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में केवल दक्षिणी ध्रुवों पर मिलती हैं। यद्यपि क्षीण रूप में ये ध्रुवीय वाताग्री जेट स्ट्रीम (रॉस्बी तरंग : Rossby Waves) के रूप में अन्य अक्षांशों के ऊपर भी मिलती हैं। जेट वायु धाराएँ पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर चलती हैं। इन जेट धाराओं की उत्पत्ति का मुख्य कारण पृथ्वी की सतह पर तापमान में अंतर व उससे उत्पन्न वायुदाब प्रवणता (Pressure Gradiant) है।
•जेट धाराओं की उत्पत्ति का मुख्य कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र तथा ध्रुवों के मध्य तापीय प्रवणता है। इसलिए ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु के समय तापीय प्रवणता अधिक होने के कारण जेट धाराओं की तीव्रता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। जेट धाराओं की उत्पत्ति का सम्बंध वायुदाब कटिबन्ध से है, जिसके कारण ही वायुदाब कटिबन्ध के विस्थापन के साथ जेट धाराओं के स्थान में भी परिवर्तन होता है।
•उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थलखण्डों का अभाव होने के कारण समांगी सतह का प्रभाव अधिक होता है जिस कारण से उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में जेट धाराओं की विशेषताओं में अधिक स्थायित्व होता है।
•विषुवत रेखीय क्षेत्र से धुव्रों की ओर जाने पर क्षोभ सीमा की ऊँचाई में कमी आने के कारण ही जेट धाराओं की ऊँचाई में भी कमी आती है। यही कारण है कि धुव्रीय वाताग्र जेट स्ट्रीम की ऊँचाई, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम की अपेक्षा कम होती है। पृथ्वी का घूर्णन पश्चिम से पूर्व की ओर होने के कारण रॉस्बी तरंग के रूप में जेट धाराओं की दिशा भी पश्चिम से पूर्व होती है।
जेट वायुधारा के प्रकार
1. ध्रुवीय रात्रि जेट स्ट्रीम (Polar Night Jet Stream)
•यह उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलाद्धों में 60° से ऊपरी अक्षांशों में
मिलती है।
2. ध्रुवीय वाताग्री जेट स्ट्रीम
•यह 40°-60° उत्तरी अक्षांशों के मध्य 9 से 12 किमी. की ऊँचाई पर मिलती है। इसका सम्बंध ध्रुवीय वाताग्रों से है एवं
यह तरंग युक्त असंगत पथ का अनुसरण करती है। इस जेट स्ट्रीम की गति 150 से 300 किमी. प्रति घंटा एवं वायुदाब
200 से 300 मिलीबार होती है। चूँकि इस जेट स्ट्रीम के बारे में स्वीडिश वैज्ञानिक रॉस्बी ने बतलाया था अतः इन्हें रॉस्बी
तरंग भी कहते हैं।
3. उपोष्ण कटिबंधीय पछुवा जेट स्ट्रीम
•ये 30°-35° उत्तरी अक्षांशों के मध्य 10 से 14 किमी. की ऊँचाई पर मिलती हैं। इनकी गति 340 से 385 किमी. प्रति घंटा तक एवं वायुदाब 200 से 300 मिलीबार होता है। इनकी उत्पत्ति का मुख्य कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र में तापीय संवहन क्रिया के कारण ऊपर उठी हुई हवाओं का क्षोभ सीमा की पेटी में उत्तर-पूर्वी प्रवाह है। भारत में दिसंबर से फरवरी के मध्य पश्चिमी विक्षोभ (Southern Oscillation) के लिए यही जेट पवनें उत्तरदायी हैं।
4. उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम
•जहाँ अन्य तीन जेट वायुधाराओं की दिशा पश्चिमी होती है, वहीं इस जेट स्ट्रीम की दिशा उत्तर-पूर्वी होती है। ये केवल उत्तरी गोलार्द्ध में 25° उत्तरी अक्षांश के समीपवर्ती क्षेत्रों में ग्रीष्म काल में उत्पन्न होती हैं। 14 से 16 किमी. की ऊँचाई पर इनकी उत्पत्ति 100 से 150 मिलीबार वायुदाब वाले क्षेत्रों में होती है। इस जेट स्ट्रीम की गति 180 किमी. प्रति घंटा होती है।
अन्य प्रकार की जेट धाराएं
पोलर नाइट जेड धाराएं
ध्रुव के ऊपर समताप मंडल से होकर गुजरती हैं यह उपध्रुव निम्न वायु पेटी के ऊपर अभिसरण क्षेत्र में मौजूद होती हैं
तटीय निम्न स्तरीय जेट धाराएं
मजबूत तट समानांतर हवाएं तटीय निम्न स्तरीय जेट द्वारा निर्मित होते हैं जो भूमि पर उच्च तापमान और समुद्र के ऊपर कम तापमान के बीच त्रीव विपरीत से निकटता से जुड़ी होती हैं यह जमीन पर उसमें चढ़ाओ और समुद्र में उच्च दबाव प्रणाली से जुड़े हैं घाटी से बाहर निकलने वाला जेट एक मजबूत उच्च डाउन वैली वायु परिसंचरण घाटी के जंक्शन और आसपास के मैदान के ऊपर से गुजरता है वे जबरदस्त ऊंचाइयों और गति के लिए सक्षम है
मध्य स्तरीय अफ्रीकी जेट धारा
यह उत्तरी गोलार्ध की गर्मियों के दौरान पश्चिमी अफ्रीका में पहुंचती है पूर्व और दक्षिण अफ्रीका के महान मैदान रात में द्रव्य निचले स्तर के जेड से गुजरती हैं
•भारतीय मानसून की उत्पत्ति के लिए यही जेट पवन (उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी जेट स्ट्रीम) उत्तरदायी है। गर्म होने के कारण यह जेट पवन सतही गर्म व आर्द्र हवाओं को ऊपर उठाकर भारत में मानसूनी वर्षा कराती हैं एवं इस प्रकार भारत में मानसून प्रस्फोट की घटनाएँ होती हैं।
जेट वायुधारा के प्रमुख कारण
कोरिओलिस प्रभाव
कोरिओलिस बल भूमध्य रेखा से ध्रुवो तक गर्मी के उत्तर दक्षिणी वायु परिवहन को चैट धाराओं के मुख्य रूप से पूर्वी पश्चिमी गति से प्रभावित करता है जिस कारण कोरिओलिस बल का निर्माण होता है
भूभाग
1.भूमि द्रव्यमान घर्षण और तापमान बिंदा के कारण जेट धारा की गति में प्रभाव डालती हैं और पृथ्वी का घूमना इन परिवर्तनों को उजागर करता है
2.सर्दियों में समताप मंडल का तापमान धारा की ताकत और स्थान को प्रभावित करता है जैसे ही जीत धाराएं का बल मजबूत होता है ध्रुवीय समताप मंडल का तापमान गिर जाता है
3.भूमि और महासागरों की गर्मी का रेट धाराओं की शक्ति और आयतन पर प्रभाव पड़ता है
मौसम पर जेठ धाराओं का प्रभाव
4.सामान्य तौर पर जेट धाराएं जितनी मजबूत होती हैं आसपास के क्षेत्रों में दबाव उतना ही कम होता है जिससे बारिश और तूफान मौसम की संभावना बढ़ जाती है
5.दूसरी ओर एक कमजोर जेट धारा उच्च दबाव वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दे सकती है जिसके साथ अक्सर साफ आसमान शांत हवाएं और कम अशांत मौसम होता है
जेट वायुधारा का उपयोग
1.जेट धाराएं क्षेत्रीय और स्थानीय मौसम को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं
2.जेट स्ट्रीम और समशीतोष्ण चक्रवात निकटता से जुड़े हुए हैं
3.जेठ धाराओं और सत्य ही पवन के आपस में टकराने से गंभीर प्रकार के तूफ़ान पैदा होते हैं
4.जेठ धाराओं की मदद से उड़ान भरने के लिए उन्हें पायलट द्वारा उपयोग किया जाता है
5.जेट धाराएं और प्रत्याशी हैं और मौसम के शांत और साफ दिखाई देने पर भी अप्रत्याशित गति करने में सक्षम है
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