महासागरीय अधस्तल का विभाजन ,महासागरीय बेसिन ,तली,

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महासागरीय अधस्तल का विभाजन

महासागरीय अधस्तल के संबंध में  हैरी हेस ने 1960 में भटकन सिद्धांत तथा संवहनीय धारा सिद्धांत जैसे संकल्पना प्रस्तुत की सागरीय स्तर विस्तार अभिमत प्रस्तुत किया हैरी हेस ने मध्य महासागरीय कटक ओके दोनों ओर के चट्टानों के चुंबकीय गुणों के विश्लेषण के आधार पर अपना मत प्रस्तुत किया

हैरी हेस ने अपने सिद्धांत में प्रतिपादित किया कि अधिकांश महासागरों में दरारें मौजूद है इन दरारों के दोनों ओर के भूखंड एक दूसरे से दूर हट रहे हैं इन दरारों के सहारे ज्वालामुखी उद्गार हो रहा है भूखंडों का दूसरा सिरा महाद्वीपों में नीचे हो जाता है जो गहराई में उच्च तापमान के कारण पिघल जाता है यह पिघला हुआ मैग्मा महासागरीय दरारों की ओर प्रवाहित होता है इस प्रकार एक बेल्ट का निर्माण होता है इसी के आधार पर हैरी हेस ने सागरीय अस्थल विस्तार की परिकल्पना का प्रतिपादन किया

महासागरीय अधस्तल को मुख्य रूप से चार प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है –

(i) महाद्वीपीय शेल्फ़

(ii) महाद्वीपीय ढाल

(iii) गहरे समुद्री मैदान तथा

(iv) महासागरीय गभीर

इस विभाजन के अतिरिक्त महासागरीय तली पर कुछ बडे तथा छोटे उच्चावच संबंधी लक्षण पाए जाते हैं, जैसे –कटकें, पहाडियाँ, समुद्री टीला, निमग्न द्वीप, खाइयाँ व खड्ड आदि।

 

 

महाद्वीपीय शेल्फ

 

महाद्वीपीय शेल्फ़, प्रत्येक महाद्वीप का विस्तृत सीमांत होता है, जो अपेक्षाकृत उथले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा होता है। यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है, जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। यह शेल्फ़ अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है जिसे शेल्फ़ अवकाश कहा जाता है।

महाद्वीपीय शेल्फ़ों की चोड़ाई एक महासागर से दूसरे महासागर में भिन्‍न होती है। महाद्वीपीय शेल्फ़ों की औसत
चोड़ाई 80 किलोमीटर होती है। कुछ सीमांतों के साथ शेल्फ़ नहीं होते अथवा अत्यंत संकीर्ण होते हैं जैसे कि चिली के तट तथा सुमात्रा के पश्चिमी तट इत्यादि पर। इसके विपरीत आकर्टिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ़ विश्व में सबसे बड़ा है जिसकी चौड़ाई 1,500 किलोमीटर है। शेल्फ़ की गहराई भी भिन्‍न भिन्न होती है। कुछ क्षेत्रों में यह 30 मीटर और कुछ क्षेत्रों में 600 मीटर गहरी होती है।

महाद्वीपीय शेल्फ़ों पर अवसादों की मोटाई भी अलग-अलग होती है। ये अवसाद भूमि से नदियों, हिमनदियों तथा पवन द्वारा लाए जाते हैं ओर तरंगों तथा धाराओं द्वारा वितरित किए जाते हैं। महाद्वीपीय शेल्फ़ों पर लंबे समय तक प्राप्त स्थूल तलछटी अवसाद जीवश्मी ईंधनों के स्रोत बनते हैं।

 

महाद्वीपीय ढाल

महाद्वीपीय ढाल महासागरीय बेसिनों और महाद्वीपीय शेल्फ़ को जोड़ती है। इसकी, शुरुआत वहाँ होती है जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ़ की तली तीक्र ढाल में परिवर्तित हो जाती है। ढाल वाले प्रदेश की प्रवणता 2 से 5 डिग्री के बीच होती है। ढाल वाले प्रदेश की गहराई 200 मीटर एवं 3,000 मीटर के बीच होती है। ढाल का किनारा महाद्वीपों के समाप्ति को इंगित करता है। इसी प्रदेश में कैनियन (गभीर खड्ड) एवं खाइयाँ दिखाई देते हैं।

 

गभीर सागरीय मैदान

गभीर सागरीय मैदान महासागरीय बेसिनों के मंद ढात वाले क्षेत्र होते हैं। ये विश्व के सबसे चिकने तथा सबसे सपाट भाग हैं। इनकी गहराई 3,000 से 6,000 मीटर के बीच होती है। ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।

 

महासागरीय गर्त

ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये गर्त अपेक्षाकृत खडे किनारों वाले संकीर्ण बेसिन होते हैं। अपने चारों ओर की महासागरीय तली की अपेक्षा ये 3 से 5 किमी० तक गहरे होते हैं। ये महाद्वीपीय ढाल के आधार तथा द्वीपीय चापों के पास स्थित होते हैं एवं सक्रिय ज्वालामुखी तथा प्रबल भूकंप वाले क्षेत्रों से संबंधित होते हैं। यही कारण है कि ये प्लेटों के संचलन के अध्ययन के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं। अभी तक लगभग 57 गर्तों को खोजा गया है, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में, 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंद महासागर में हैं।

 

उच्चावच की लघु आकृतियाँ

ऊपर बताए गए महासागरीय अधस्तल के प्रमुख उच्चावचों के अतिरिक्त कुछ लघु किंतु महत्वुपर्ण आकृतियाँ महासागरों के विभिन्‍न भागों में प्रमुखता से पाई जाती हैं

 

अध्य-महीसागरीय कटक

एक मध्य-महासागरीय कटक पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से बना होता है, जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग किए गए होते हैं। इन पर्वत श्रृंखलाओं के शिखर की ऊँचाई 2,500 मीटर तक हो सकती है तथा इनमें से कुछ समुद्र की सतह तक भी पहुँच सकती हैं इसका उदाहरण आईसलैंड है जो मध्य अटलांटिक कटक का एक भाग है।

 

समुद्री टीला

यह नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है, जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है, किंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुँच पाता। समुद्री टीले ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3,000 से 4,500 मीटर ऊँचे हो सकते हैं। एम्पेरर समुद्री टीला, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीपसमूहों का विस्तार है इसका एक अच्छा उदाहरण हे।

 

सबसे सपाट जलमग्न कैनियन

ये गहरी घाटियाँ होती हैं। जिनमें से कुछ की तुलना कोलोरेडो नदी की ग्रैण्ड कैनियन से की जा सकती हेै। कई बार ये बड़ी नदियों के मुहाने से आगे की ओर विस्तृत होकर महाद्वीपीय शेल्फ़ व ढालों को आर-पार काटती नज़र आती है। हडसन कैनियन विश्व का सबसे अधिक जाना माना कैनियन है।

 

निमग्न द्वीप

यह चपटे शिखर वाले समुद्री टीले है। इन चपटे शिखर वाले जलमग्न पर्वतों के बनने की अवस्थाएँ क्रमिक अवतलन के साक्ष्यों द्वारा प्रदर्शित होती हैं। अकेले प्रशांत महासागर में अनुमानतः 10,000 से अधिक समुद्री टीले एवं निमग्न द्वीप उपस्थित हैं।

 

प्रवाल द्वीप

ये उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों से युक्त निम्न आकार के द्वीप हैं जो कि गहरे अवनमन को चारों ओर से घेरे हुए होते हैं। यह समुद्र (अनूप) का एक भाग हो सकता है या कभी-कभी ये साफ, खारे या बहुत अधिक जल को चारों तरफ़ से घिरे रहते हैं।

 

 

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