मृदा क्या है ?
मृदा जिसमें बहुत रासायनिक भौतिक एवं जैविक क्रियाएं चलती रहती हैं मृदा अपक्षय आकर्षण का परिणाम है यह वृद्धि का माध्यम भी है यह एक परिवर्तनशील तथा तत्व है इसकी बहुत सी विशेषताएं मौसम के साथ बदलती रहती हैं यह वैकल्पिक रूप से ठंडी और गर्म या शुष्क एवं आद्र हो सकती है यदि मृदा बहुत अधिक ठंडी या बहुत अधिक सुस्त होती है तो जैविक क्रियाएं मंदिर बंद हो जाती हैं यदि इसमें पत्तियां गिरती या घासी सूख जाते हैं तो जैविक पदार्थ बढ़ जाते हैं
मृदा निर्माण की प्रक्रिया
मृदा निर्माण या मृदा जनन सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है यह अपक्षय प्रवर ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है। सर्वप्रथम अपक्षय द्वारा लाए गए पदार्थ का निक्षेपण बैक्टीरिया या अन्य निष्कर्ष पौधों जैसे कई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं निक्षेप के अंदर कई जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं जीव एवं पौधों के मृत अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं
प्रारंभ में गोंड घास एवं फंगस की वृद्धि हो सकती है बाद में पक्षों एवं वायु द्वारा लाए गए पैसों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है पौधों की चढ़े नीचे तक घुस जाती हैं बिल बनाने वाले जानवर कणों को ऊपर लाते हैं जिससे पदार्थ का पुंज छिद्र में हो जाता है इस प्रकार जल धारण करने की क्षमता वायु में प्रवेश आदि के कारण अंततः मृदा तैयार होती है
मृदा निर्माण के कारक
मृदा निर्माण पांच मूल कार्य को द्वारा नियंत्रित होती है
1, मूल पदार्थ शैले
2, जलवायु
3, स्थलाकृति/उच्चावच
4, जैविक क्रियाएं
5, समय
मूल पदार्थ शैल
मृदा निर्माण में मूल से लेकर निष्क्रिय नियंत्रक कारक है अपक्षय शैल मलवा या लाए गए निक्षेप हो सकते हैं मृदा निर्माण गठन संरचना तथा शैल निक्षेप के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है
मूल पदार्थ के अंतर्गत अपक्षय की प्रक्रिया एवं उसकी दर तथा आवरण की गहराई प्रमुख तत्व होते हैं समान आधार सेल पर मृदा में अंतर हो सकता है तथा असमान आधार पर समान मदद मिल सकती है परंतु जब मिल जाएं बहुत नूतन तथा पर्याप्त परिपक्व नहीं होती तो मृदा एवं मूल खेलों के प्रकार में घनिष्ठ संबंध होता है कुछ चुना क्षेत्रों में भी जहां अपक्षय प्रक्रिया में विशिष्ट एवं विचित्र होती हैं मिट्टी अमूल सेल से स्पष्ट संबंध दर्शाती हैं
जलवायु
जलवायु मृदा निर्माण में महत्वपूर्ण सक्रिय कारक है मृदा के विकास में संलग्न जलवायवी तत्वों में प्रमुख है
1 प्रवणता वर्षा एवं वशीकरण की बारंबारता अवधि तथा आद्रता
2 तापक्रम मैं मौसमी एवं दैनिक विनता
स्थलाकृति/ उच्चावच
मूल शेरों की भांति स्थलाकृति भी एक दूसरा निष्क्रिय नियंत्रक है स्थलाकृति मूल पदार्थ के अच्छादन अथवा अनावृत होने को सूर्य की किरणों के संबंध में प्रभावित करती है तथा स्थलाकृति धरातलीय एवं उप सतही अप्रवाह की प्रक्रिया को मूल पदार्थ के संबंध में भी प्रभावित करती है तीव्र ढालो पर मृदा छिछली तथा सपाट उच्च क्षेत्रों में गहरी मोटी होती है निम्न ढालो जहां अपरदन मंद तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है मृदा निर्माण बहुत अनुकूल होता है जैविक पदार्थों के अच्छे एकीकरण के साथ मृदा का रंग भी गहरा हो जाता है
जैविक क्रियाएं
वनस्पति आवरण एवं जीव को मूल पदार्थ पर प्रभावित तथा बाद में भी विद्वान रहते हैं मृदा में जैविक पदार्थ नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं मृदा पौधों मृदा को सूक्ष्म / जैव पदार्थ ह्यूमस प्रदान करते हैं
कुछ जैविक अम्ल जो फ्यूमस बनाने की अवधि में निर्मित होते हैं मृदा के मूल पदार्थ के खनिजों के विनियोजन में सहायता करते हैं बैक्टीरियल कार्य की गहनता ठंडी एवं गर्म जलवायु की मिट्टियां में अंतर को दर्शाती है
ठंडी जलवायु में ह्यूमस एकत्रित हो जाता है क्योंकि यहां बैक्टीरियल वृद्धि धीमी होती है आर्कटिक एवं टुंड्रा जलवायु में निम्न बैक्टीरियल क्रियाओं के कारण आयोजित जैविक पदार्थों के साथ पीठ के संस्तर विकसित हो जाते हैं
बैक्टीरिया एवं मृदा के चीज हवा से गैस या नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन निर्धारण कहते हैं राइजोबियम एक प्रकार का बैक्टीरिया जंतु वाले पौधों के जड़ ग्रंथि में रहता है
समय
मृदा निर्माण में समय तीसरा महत्वपूर्ण कारक है मृदा निर्माण प्रक्रिया के प्रचलन में लगने वाले समय की अवधि मृदा की परिपक्वता एवं उसकी क्षमता का विकास निर्धारण करती हैं एक मृदा तभी परिपक्व होती है जब मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएं लंबे समय तक विकास करते हुए कार्यरत रहती हैं थोड़े समय पहले निक्षेपित जलोढ़ मृदा या हिमानी टिल से विकसित मिटाएं तरुण युवा मानी जाती हैं
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