रासायनिक अपक्षय के प्रकार:
1 ऑक्सीकरण
ऑक्सीजन द्वारा शेलो पर होने वाले प्रभाव को ऑक्सीकरण कहते हैं। जल में ऑक्सीजन CO2 गैस घुली रहती है वायुमंडलीय आद्र ऑक्सीजन गैस चट्टानों के खनिजों से सहयोग कर उन्हें आक्साइड में बदल देती है। यही गैस युक्त जल उष्ण एवं अर्ध उष्ण प्रदेशों में लौह युक्त चट्टानों (बायोटाइट अल्विन एवं पाईराक्सिन )तथा लोहे की वस्तुओं पर तेजी से प्रभाव डालता है। जंग लगने की क्रिया इसी कारण से होती है बार-बार पानी एवं हवा के संपर्क में आने से लोहा लोह-आक्साइड में बदल जाता है। लोहे के अतिरिक्त कैल्शियम ,पोटेशियम तथा मैग्नीशियम के तत्व पर भी ऑक्सीजन की रसायनिक क्रिया होती है।
ऊष्ण प्रदेशों की सभी प्रकार की लाल व भुरभुरी लाल पीली मिट्टी लोह वाली चट्टानों में ऑक्सीकरण की क्रिया से ही नष्ट होकर मिट्टी में बदलतीजाती है सिड़ेराईट एवं लिमोनाईट लोहे के जमाव पूर्व के कठोर मेग्नेताईट एवं हेमेटाईट चट्टानों के ऑक्सीकरण की क्रिया के बाद निर्मित बालू या मोटी मिट्टी जैसे जमाव के कारण ही पाई जाती है।
दशाएं प्रायं भूमिगत जल स्तर के नीचे अवरूध्ध जल के क्षेत्र या जलप्लावित क्षेत्रों में पाई जाती है। न्यूनीकृत होने पर लोहे का रंग लाल हराया आसमानी या धूसर रंग में बदल जाता है।
2 कार्बनीकरण
जब जल में खुला हुआ कार्बन चट्टानों पर प्रभाव डालता है, तो उसे कार्बनिकरण कहते हैं यह फेल्सपार तथा कार्बोनेट युक्त खनिज को पृथक करने में एक आम सहायक प्रक्रिया है | कार्बन जल में घुलकर कार्बोनिकअम्ल का निर्माण करता है। यह अम्ल चूनायुक्त चट्टानों को शीघ्र ही खोल देता है। भूमिगत जल द्वारा चुना पत्थर के प्रदेशों में बड़े पैमाने पर अपक्षय होता है अनुमान है कि कार्बनिकरण द्वारा चुना पत्थर प्रदेशों में भूतल प्रति 1000 वर्ष वर्षों में लगभग 5 सेंटीमीटर नीचे हो जाता है। कार्बनिकरण के परिणाम स्वरुप ही भूमिगत गुफाओं का निर्माण होता है।
3 जलयोजन
जलयोजन एक रसायनिक क्रिया है, चट्टानों के खनिजों में जल के अवशोषण को ही जलयोजन कहते हैं भूपटल में कुछ ऐसे ही भी खनिज (ऑक्साइड, फेल्सपार आदि) होते हैं जो हाइड्रोजन युक्त जल को अवशोषित करने के बाद जलयोजीत और भारी हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप दबाव के कारण चट्टाने टूट फूट जाती है। और उनका स्वरूप बदल जाता है।
फेल्सपार इस क्रिया काओलीन मिट्टी में परिवर्तित हो जाता है। कैलशियम सल्फेट से जल के मिलने के बाद जिप्सम में परिवर्तित हो जाता है जो कैलशियम सल्फेट की अपेक्षा अधिक अस्थाई होता है यह एक लंबी वह उत्क्रमणीय प्रक्रिया है जिसकी सतत पुनरवृति से चट्टानों में अंतराल उत्पन्न हो जाते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप चट्टानों में विघटन हो सकता है।
भू-पर्पटी में अनेक क्ले युक्त खनिज शुष्क एवं आद्र होने की प्रक्रिया में फैलते एवं संकुचित होते हैं। इस प्रक्रिया की पुनरावृति उपरिशाई पदार्थों में दरार का कारण बनती है। रंध्र क्षेत्र में समाहित लवणीय एवं बार-बार जलयोजन से प्रभावित होकर शेल-विभंग में सहायक होता है जलयोजन के कारण खनिजों के आयतन में परिवर्तन से अप्श्ल्कन एवं करणी विघटन द्वारा भौतिक अपक्षय में भी सहायता प्रदान करता है।
4 विलय या घोल
जब कोई वस्तु जलि या अम्ल में घुल जाती है। तो घुलित तत्वों के जलीय अम्ल को घोल कहते हैं। इस प्रक्रिया में ठोस पदार्थों का घोल में मिलना सम्मिलित होता है। जो जल या अमल में खनिज की विलेयता पर निर्भर करता है जल से संपर्क में आने पर अनेक ठोस पदार्थ विघटित हो जाते हैं एवं जल में निलंबन करण के रूप में मिश्रित हो जाते हैं।
घुलनशील शेल निर्माण करने वाले नाइट्रेट, सल्फेट एवं पोटेशियम जैसे खनिज इस प्रक्रिया से प्रभावित होते हैं। अर्थात यह खनिज अधिक वर्षा की जलवायु में बिना कोई अवशिष्ट छोड़ें सुगमता से निक्षलित हो जाते हैं | और शुष्क प्रदेशों में वर्षा के कारण एकत्रित हो जाते हैं।
चूना पत्थर में विद्यमान कैलशियम कार्बोनेट मैग्नीशियम बाइकार्बोनेट जैसे खनिज कार्बनिक एसिड-युक्त जल (जो जल में कार्बन डाइऑक्साइड मिलने से बनता है) मैं घुलनशील होते हैं तथा जल में एक घोल के रूप में प्रवाहित होते हैं। क्षन्योमुख जैव-पदार्थों द्वारा जनित कार्बन-डाइऑक्साइड मृदा जल के साथ मिलकर इस प्रक्रिया में बहुत सहायक होता है साधारण नमक (सोडियम क्लोराइड )भी एकशेल- निर्माण करने वाला खनिज है जो कि जल में घुलनशील है।
5 सिलिका का अपघटन
चट्टानों से सिलिका का अलग होना ही सिलिका का अपघटन कहलाता है। आदर प्रदेशों की आग्ग्नाये चट्टानों पर पानी की क्रिया के प्रभाव से सिलिका एवं अन्य तत्व तेजी से अलग होने लगते हैं इस क्रिया में सिलिका (बालू) शेष रहती है सिलिका युक्त चट्टानों का अधिकांश भाग घुल जाता है इसे सिलिका का पृथ्करण या सिलिका का अलग होना भी कहते हैं।
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