कोपेन का जलवायु वर्गीकरण, पद्धति, विशेषता, वर्गीकरण का आधार

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कोपेन का जलवायु वर्गीकरण (kopen ka Jalvayu vargikaran)

 

विश्व की जलवायु का अध्ययन जलवायु संबंधी आंकड़ों एवं जानकारियों को संगठित करके किया जा सकता है इन आंकड़ों को आसानी से समझने के लिए हमें इनका विश्लेषण करना अति आवश्यक कहता था छोटी इकाइयों में बांटना महत्वपूर्ण है जिससे हम इनका अध्ययन आसानी पूर्वक कर सकें

 

 

जलवायु का वर्गीकरण तीन वृहद उपगमनो द्वारा किया गया है

अनुभविक

अनुभव एक पद्धति विशेष रूप से तापमान एवं वर्णन से संबंधित आंकड़ों पर आधारित है

 

जननिक
इस पद्धति में जलवायु को उनके कारणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है

अनुप्रयुक्त
यह पद्धति किसी विशेष उद्देश्य के लिए प्रयुक्त की जाती है

 

कोपेन के  जलवायु वर्गीकरण की पद्धति

 

कोपेन का जलवायु वर्गीकरण के लिए अनुभवी पद्धति का विशेष रूप से इस्तेमाल किया है

कॉपर ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की है

उन्होंने तापमान तथा वर्षा के कुछ निश्चित मानो का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया है

 

वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आंकड़ों पर आधारित यह एक अनुभव एक पद्धति है

कोपेन के जलवायु के समूहों एवं प्रकारों की पहचान करने के लिए बड़े तथा छोटे अक्षरों का प्रयोग आरंभ किया सन् 1918 में विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय है

कोपेन ने पांच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किए जिनमें से चार तापमान और एक वर्षा पर आधारित है

 

 

कोपेन के अनुसार जलवायु समूह

A उष्णकटिबंधीय

सभी महीनों का औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से अधिक

B शुष्क जलवायु
वर्षण की तुलना में विभव वाष्पीकरण की अधिकता

 

C कोष्ण शीतोष्ण
सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान 3 सेल्सियस से अधिक किंतु 18 डिग्री सेल्सियस से कम मध्य अक्षांश जलवायु

 

D शीत हिम वन जलवायु
वर्षण के सार्व अधिक ठंडे महीने का औसत तापमान 0 अंश तापमान से 3 डिग्री नीचे

 

E शीत
सभी महीनों का औसत तापमान 10 सेल्सियस से कम

 

H उच्च भूमि
ऊंचाई के कारण शीत

 

 

 

कोपेन का जलवायु वर्गीकरण

 

उष्णकटिबंधीय जलवायु – A

उष्णकटिबंधीय आदर जलवायु कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच पाई जाती है संपूर्ण वर्ष सूर्य के सीधे प्रकाश तथा अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की उपस्थिति के कारण यहां की जलवायु उसने एवं आदत रहती है यहां वार्षिक तापांतर बहुत कम तथा वर्षा अधिक होती है

उष्णकटिबंधीय समूह को तीन प्रकार में बांटा जा सकता है

 

उष्णकटिबंधीय आद्र जलवायु ( Af प्रकार की जलवायु )

 

इस प्रकार की जलवायु विश्व की वृद्धि के निकट पाई जाती है इस जलवायु के प्रमुख क्षेत्र दक्षिणी अमेरिका का अमेजन बेसिन पश्चिमी विश्व वित्तीय अफ्रीका तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के द्वीप हैं वर्ष के प्रत्येक माह में दोपहर के बाद गरज और वो चारों के साथ प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है तापमान समान रूप से ऊंचा और वार्षिक तापांतर कम होता है किसी भी दिन अधिकतम तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस होता है इस जलवायु में सघन वितान तथा व्यापक जैव विविधता और सदाबहार वन पाए जाते हैं

 

उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु ( Am प्रकार की जलवायु)

उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिणी अमेरिका के उत्तर पूर्वी भाग तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती है भारी वर्षा अधिकतर गर्मियों में होती है शीत शुष्क होती है

 

उष्णकटिबंधीय आद्र एवं शुष्क जलवायु (Aw प्रकार की जलवायु)

उष्णकटिबंधीय आदर एवं शुष्क जलवायु Af प्रकार के जलवायु प्रदेशों के उत्तर एवं दक्षिण में पाई जाती है
इसकी सीमा महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में शुष्क जलवायु के साथ और पूर्वी भाग में Cf और Cw प्रकार की जलवायु के साथ पाई जाती है

 

 

शुष्क जलवायु – B

शुष्क जलवायु की विशेषता अत्यंत न्यून वर्षा है जो पौधों की वृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं होती यह जल वायु पृथ्वी के बहुत बड़े भाग में पाई जाती है जो विश्व के वृत्त से 15 से 60 डिग्री उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच स्थित है

इन स्थानों पर वर्षा का अवतलन और उत्क्रमण वर्षा नहीं होने देता महाद्वीप के पश्चिमी सीमांत ओं पर ठंडी धाराओं के आसन क्षेत्र विशेष दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर यह जलवायु विश्व के व्रत की और अधिक विस्तृत और तटीय भाग में पाई जाती है

शुष्क जलवायु को स्टैपी तथा अर्ध- शुष्क जलवायु (Bs) मरुस्थल जलवायु (BW) में विभाजित किया जाता है।

उपोष्ण कटिबंधीय स्टेपी (Bsh) एवं उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थल (BWh) जलवायु

 

इन दोनों ही प्रकार की जलवायु में वर्षा और तापमान के लक्षण एक समान होते हैं आदर एवं शुष्क जलवायु के संक्रमण क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण उपोष्ण कटिबंधीय स्टैपी जलवायु में मरुस्थल जलवायु की अपेक्षा वर्षा थोड़ी ज्यादा होती है जो विरल घास भूमियों के लिए पर्याप्त होती है वर्षा दोनों ही जलवायु में परिवर्तनशील होती है

यह वर्षा का परिवर्तनशील स्टैपी में जीवन को अधिक प्रभावित करता है इससे कई बार अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है

मरुस्थल में वर्षा थोड़ी किंतु गरज के साथ रिवर चारों के रूप में होती है जो मृदा में नमी पैदा करने के लिए प्रभावी होती है ठंडी धाराओं तापमान लगते तटीय मरुस्थल में कोहरा एक आम बात है

 

 

 

कोष्ण शीतोष्ण जलवायु – C

इस प्रकार की जलवायु 30 डिग्री से 50 डिग्री अक्षांश के मध्य मुख्य रूप से महाद्वीपों के पूर्वी और पश्चिमी सीमांत पर पाई जाती है इस जलवायु में सामान्य रूप से ग्रीष्म ऋतु कोष्ण और शीत ऋतु मृदुल होती है

इस जलवायु को चार भागों में बांटा जा सकता है

 

उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु (CWa प्रकार की जलवायु)

इस प्रकार के जलवायु कर्क एवं मकर रेखा से ध्रुवो की ओर मुख्यतः भारत के उत्तर मैदान और दक्षिणी चीन के आंतरिक मैदान में पाई जाती है

भूमध्यसागरीय जलवायु (Cs प्रकार की जलवायु)

यह जलवायु मुख्य रूप से भूमध्य सागर के चारों ओर तथा उपोष्ण कटिबंध से 30 से 40 डिग्री सेल्सियस अक्षांशों के बीच महाद्वीप के पश्चिमी तट पर पाई जाती है

मध्य कैलिफोर्निया मध्य चिल्ली तथा ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी पूर्वी और दक्षिणी पश्चिमी तट के उदाहरण है यह क्षेत्र ग्रीष्म ऋतु में कुपोषण कटिबंधीय उच्च वायुदाब तथा शीत ऋतु में पांचवा पौधों के प्रभाव में आ जाता है इस प्रकार उसने वह शुष्क गर्मियां तथा मृदु वर्षा युक्त सर्दियां इस जलवायु की विशेषताएं हैं

 

आद्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु (Cfa प्रकार की जलवायु)

यह जलवायु मुख्य रूप से महाद्वीपों के पूर्वी भाग में पाई जाती है इस प्रदेश में वायु राशियों अस्थिर रहती हैं और पूरे वर्ष वर्षा करती हैं यह जलवायु पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका दक्षिणी तथा पूर्वी चीन दक्षिणी जापान उत्तर पूर्वी अर्जेंटीना तटीय दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर पाई जाती है औसत वार्षिक वर्षा 75 से 150 सेंटीमीटर के बीच रहती है ग्रीष्म ऋतु में चक्रवात और शीत ऋतु में तूफान सामान्य विशेषताएं हैं

 

समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु (Cfb प्रकार की जलवायु)

समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर भूमध्यसागरीय जलवायु से ध्रुवों की और पाई जाती है

यह जलवायु मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी यूरोप उत्तरी अमेरिका का पश्चिमी तट उत्तरी कैलिफोर्निया दक्षिणी चिल्ली दक्षिणी पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड है यहां समुद्री प्रभाव के कारण तापमान मध्यम होते हैं और शीत ऋतु में अपने अक्षांशों की तुलना में कोष्ण होते हैं

 

 

शीत हिम वन जलवायु – D

 

यह जलवायु उत्तरी गोलार्ध में 40 से 70 अंशों के बीच यूरोप एशिया और उत्तरी अमेरिका के महाद्वीपीय क्षेत्रों में पाई जाती है

इस जलवायु को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है

 

आद्र जड़ों से युक्त ठंडी जलवायु (Df प्रकार की जलवायु)

यह जलवायु समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु और मध्य अक्षांशीय स्टैपी जलवायु से ध्रुवो की और पाई जाती है
जाड़े ठंडे और बर्फीले होते हैं तुषार मुक्त रितु छोटी होती है वार्षिक तापांतर अधिक होता है ध्रुवो की ओर सर्दी अधिक उग्र हो जाती है

 

शुष्क जड़ो से युक्त ठंडी जलवायु (DW प्रकार की जलवायु)

यह जलवायु उत्तर पूर्वी एशिया में पाई जाती है जाटों में प्रति चक्रवात का स्पष्ट विकास तथा ग्रीष्म ऋतु में उसका कमजोर पड़ना इस क्षेत्र में पवनों के मानसून जैसी दशाएं उत्पन्न करते हैं गुरुओं की ओर गर्मियों में तापमान कम होता है और जाटों में तापमान अत्यधिक न्यून होता है वार्षिक वर्षा कब होती है

 

 

ध्रुवीय जलवायु – E

ध्रुव जलवायु 70 डिग्री अक्षांश से परे ध्रुव की ओर पाई जाती है ध्रुवीय जलवायु को दो भागों में बांटा जा सकता है

 

टुंड्रा जलवायु (ET प्रकार की जलवायु)

इस जलवायु का नाम काई लाई कांत तथा पुष्पी पादप जैसे छोटे वनस्पति प्रकारों के आधार पर रखा गया है यह स्थाई तुषार का प्रदेश है जिसमें अधोमुखी स्थाई रूप से जमी रहती है लघुवर्धन काल और छोटी वनस्पति का ही पोषण कर पाते हैं ग्रीष्म ऋतु में टुंड्रा प्रदेश में दिन के प्रकाश की अवधि लंबी होती है

 

हिमटोप जलवायु (EF प्रकार की जलवायु)

यह जलवायु ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के आंतरिक भागों में पाई जाती है गर्मियों में भी तापमान ही मांग से नीचे रहता है इस क्षेत्र में वर्षा थोड़ी मात्रा में होती है तुषार एवं हिम एकत्रित होती जाती है जिन का बढ़ता हुआ दबाव इन पदों को विकृत कर देता है हिम परतों के यह टुकड़े आर्कटिक एवं अंटार्कटिका जल में खिसक कर प्लावी हिम शैल के रूप में तैरते हैं

 

 

उच्च भूमि जलवायु – F

उच्च भूमि जलवायु भोम आकृति द्वारा नियंत्रित होती है ऊंचे पर्वतों में थोड़ी-थोड़ी दूरियों पर मध्यमान तापमान में भारी परिवर्तन पाए जाते हैं उच्च भूमियों में वर्षा के प्रकार व उनकी गहनता में भी स्थानिक अंतर पाए जाते हैं पर्वतीय वातावरण में ऊंचाई के साथ जलवायु प्रदेशों के इस तरह ऊर्ध्वाधर कटिबंध पाए जाते हैं

 

 

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